144-मटिहानी विधान सभा क्षेत्र की जनता की यही पुकार, अबकी बार राजेन्द्र प्रसाद सिंह।
बेगुसराय ज़िले के मटिहानी विधान सभा से महागठबंधन के सहयोगी के रूप में सीपीआई(एम) के उम्मीदवार हैं कॉमरेड राजेंद्र प्रसाद सिंह। राजेंद्र प्रसाद सिंह का परिवार वामपंथी रुझान का था। उनके पिता हाई स्कूल के प्रिंसिपल थे और कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य भी, शायद इसी परिवेश का असर रहा हो जिसने राजेंद्र प्रसाद सिंह को कम्युनिस्ट पार्टी की ओर आकर्षित किया। 1966 का साल था जब मुज़फ़्फ़रपुर के आरडीएस कॉलेज में ग्यारहवीं के छात्र राजेंद्र प्रसाद सिंह ने बिहार राज्य छात्र फ़ेडरेशन की सदस्यता ग्रहण की। उस समय तक स्टूडेंड फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडिया (एसएफ़आई) का गठन नहीं हुआ था और अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम से छात्र संगठन काम कर रहे थे। 1971 में देश भर के छात्र संगठनों ने मिलकर एसएफ़आई का गठन किया। 1971 में ही राजेंद्र प्रसाद सिंह एसएफ़आई की बिहार इकाई के संयुक्त सचिव निर्वाचित हुए।
छात्र मोर्चे के बाद राजेंद्र प्रसाद सिंह नौजवान मोर्च पर आए। 1980 में केंद्रीय स्तर पर भारत की जनवादी नौजवान सभा (डीवाईएफ़आई) के गठन के समय राजेंद्र प्रसाद सिंह बिहार के प्रतिनिधि के रूप में शामिल हुए थे। 1980 में ही उन्हें डीवाईएफ़आई के बेगुसराय ज़िले का अध्यक्ष तथा बिहार राज्य का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया। 1982 में वो किसान सभा को मोर्चे पर आए साथ ही सीपीआई(एम) के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बने और पार्टी की ज़िला कार्यकारिणी के सदस्य भी निर्वाचित हुए। राजेंद्र प्रसाद सिंह 1991 में सीपीआई(एम) के बेगुसराय ज़िला के सचिव बने और राज्य कमिटि के सदस्य निर्वाचित हुए। उसी साल किसान सभा के बिहार राज्य उपाध्यक्ष बनाए गए, जिस पद पर वह अब भी कार्यरत हैं। वर्तमान समय में वह अखिल भारीय किसान सभा की राष्ट्रीय काउंसिल के सदस्य हैं तथा सीपीआई(एम) के राज्य सचिवमंडल के सदस्य हैं।
1978 में महज़ 28 साल की उम्र में मुखिया बनने वाले राजेंद्र प्रसाद सिंह अपनी सक्रिया के कारण अगले ही साल बेगुसराय के प्रमुख निर्वाचित हुए, जिस पर पर वह 1995 तक बने रहे। 1995 में विधायक बनने से के बाद उन्होंने इस पद से त्यागपत्र दे दिया। राजेंद्र प्रसाद सिंह 1995 में बेगुसराय सीट से विधायक बने, उस समय राजद और सीपीआई(एम) का चुनावी तालमेल था। इस बार फिर वह उसी तरह के तालमेल के साथ उम्मीदवार हैं और तब के बेगुसराय का बहुत सा हिस्सा परिसीमन के बाद मटिहानी विधान सभा में शामिल कर दिया गया है।
राजेंद्र प्रसाद सिंह के पिता जो अंग्रेजी के शिक्षक और मध्यमवर्गीय किसान थे उनकी इच्छा थी कि उनका बेटा डॉक्टर बने। लेकिन 1966 में आरडीएस कॉलेज में आंदोलनरत छात्रों पर फ़ायरिंग में एक शिक्षक और छात्रा की मृत्यु ने उनको हिलाकर रख दिया। उसके बाद वो अपनी विज्ञान की पढ़ाई जारी नहीं रख सके और बेगुसराय के बीडी कॉलेज में इतिहास विषय से बीए में दाख़िला ले लिया। बीए अंतिम वर्ष की परीक्षा का प्रीबोर्ड ही हुआ था कि 1974 का छात्रों का आंदोलन शुरू हो गया। आंदोलन के दौरान उनको गिरफ़्तार कर भागलपुर जेल भेज दिया गया। चार महीन बाद जब वह जेल से रिहा हुए उसी दौरान बीए के अंतिम वर्ष की परीक्षा हो चुकी थी और उनका साल बर्बाद हो चुका था। फिर उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और पूरी तरह से आंदोलन में लग गए।
बाक़ी जगहों की तरह बेगुसराय में भी सीपीआई(एम) का संघर्ष ज़मीन के मुद्दे से जुड़ा रहा है। 1991 में पार्टी का ज़िला सचिव बनने के बाद बेगुसराय में 42 जगहों पर ज़मीन का आंदोलन चला, जिसमें भूदान वाली ज़मीन पर भूमिहीनों को बसाने का काम पार्टी ने किया। इस आंदोलन का सक्रिय नेतृत्व राजेंद्र प्रसाद सिंह ने किया। लगभग 70 साल की उम्र में आज भी पार्टी के पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप लोगों की ज़मीनी समस्याओं के लिए संघर्ष करते हैं। सुबह से शाम तक उनका समय पार्टी के सांगठनिक कामों और पार्टी को मज़बूत करने के प्रायासों में बीतता है।