छपरा ज़िले के माँझी विधान सभा सीट से सी०पी०आई०(एम) के उम्मीदवार हैं- डॉ. सत्येंद्र यादव। महागठबंधन के साथ सीटों के तालमेल के अंतर्गत यह सीट सी०पी०आई०(एम) को मिली है। 2015 के विधान सभा चुनाव में धमाकेदार उपस्थिति दर्ज करते हुए इन्होंने लगभग 18 हज़ार वोट हासिल किया था और नज़दीकी मुक़ाबले में तीसरे स्थान पर रहे थे, तब सी०पी०आई०(एम) ने अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ा था। पिछले पाँच सालों के दौरान उनके लगातार संघर्ष की वजह से और स्थानीय जनता के दबाव में महागठबंधन को उनके लिए यह सीट छोड़ना पड़ा है।
वामपंथी आंदोलन और ख़ासकर सी०पी०आई०(एम) के नज़रिये से देखा जाए तो माँझी नयी जगह है। पारंपरिक रूप से यहाँ वामपंथ का कोई ख़ास जनाधार नहीं रहा है। 2010 में डॉ. सत्येंद्र यादव पहली बार सी०पी०आई०(एम) के उम्मीदवार के तौर पर माँझी से चुनाव लड़े। उस समय तीन पंचायतों में पार्टी का संगठन था। 2015 के चुनाव के समय 18 पंचायतों में संगठन का विस्तार हुआ, आज सभी 36 पंचायतों में सी०पी०आई०(एम) का संगठन है। ये सब डॉ. सत्येंद्र यादव के नेतृत्व में लगातार होने वाले जनसंघर्षों का सकारात्मक नतीजा है।
डॉ. सत्येंद्र यादव अपने शुरुआती छात्र जीवन से ही वामपंथी राजनीति के संपर्क में आए। 1991 में सी०पी०आई०(एम) के छात्र मोर्चा स्टूडेंट फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडिया (एस०एफ़०आई०) के सदस्य बने। 1992 में ये एस०एफ़०आई० के सारण ज़िला सचिव बने। 1999 में ये एस०एफ़०आई० के राज्य- अध्यक्ष बने, तब बिहार और झारखंड एक ही राज्य था। ये इस पद पर 2005 तक रहे। एस०एफ़०आई० राज्याध्यक्ष के रूप में इनका कार्यकाल संघर्ष और उपलब्धियों से भरा रहा। 2002 में भागलपुर में छात्रों पर हुई पुलिस फ़ायरिंग के विरोध में पटना सहित पूरे बिहार में राज्य सरकार के ख़िलाफ़ छात्रों का विरोध हुआ, भारी विरोध के बाद सरकार को छात्रों की माँगे माननी पड़ीं। इसी तरह से 2003 में पटना विश्वविद्यालय में इस बात को लेकर आंदोलन हुआ कि बिहार बोर्ड से इंटर पास करने वाले छात्रों को पटना विश्वविद्यालय के प्रवेश में 50 प्रतिशत आरक्षण दिया जाए, जो प्रावधान अब तक लागू है। पटना विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी को 24 घंटे खोले जाने को लेकर भी छात्रों का आंदोलन हुआ। इन सभी आंदोलनों में डॉ. सत्येंद्र यादव की निर्णायक व नेतृत्वकारी भूमिका रही है।
2002 में राजेंद्र कॉलेज से बी०ए० करने वाले डॉ. सत्येंद्र यादव प्रतिभाशाली छात्र रहे हैं। 2005 में एम० ए० (राजनीति विज्ञान) में उन्होंने पूरे जय प्रकाश विश्वविद्यालय में टॉप किया। इसके बाद उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में ही पीएच०डी० किया और डाक्ट्रेट की अपाधि हासिल की। डॉ. सत्येंद्र यादव ने पटना के बी० एन० कॉलेज और परसा के पी० एन० कॉलेज में कुछ सालों तक अध्यापन का काम किया। उसके बाद ये अपनी पार्टी सी०पी०आई०(एम) के पूर्णकालिक कार्यकर्ता हो गए।
डॉ. सत्येंद्र यादव का अपना छोटा-सा परिवार है, पत्नी, एक बेटी और एक बेटा। उनके दो भाई पश्चिम बंगाल में मेहनत मज़दूरी कर अपनी जीविका चलाते हैं। निम्न मध्यवर्गीय परिवार से सम्बंध रखने वाले डॉ. सत्येंद्र यादव का परिवार पशुपालन के पेशे से जुड़ा रहा है। छात्र और युवा मोर्चे से होते हुए फ़िलहाल किसान मोर्चे पर कार्यरत हैं और किसान सभा के जिला सचिव हैं। एक पूर्णकालिक कार्यकर्ता होने के नाते इनका दैनिक काम पार्टी व जनता को समर्पित होता है। जैसे कोई व्यक्ति किसी के लिए रोज़ाना आठ घंटे की नौकरी करता है, वैसे ही ये जनता की सेवा करते हैं, लेकिन यह काम आठ घंटे का नहीं बल्कि चौबीसों घंटे का है।
सुबह से शाम तक लोगों के बीच ही बीतता है। लोगों के हक़- हुक़ूक़ के लिए लड़ते हुए इन्हें कई तरह के हमले और संघर्ष का भी सामना करना पड़ा है। सामंती शोषण के ख़िलाफ़ संघर्ष का ही परिणाम है कि डॉ. सत्येंद्र यादव को हत्या को झूठे आरोप में फँसा दिया गया और इसके लिए उनको 6 महीने जेल में गुज़ारने पड़े।  इस तरह संघर्ष भरे दैनिक जीवन में भी ये अपने लिए एकांत के क्षण तलाश लेते हैं और दो-ढाई घंटे अकेले अपने साथ समय बिताकर फिर से नयी ऊर्जा के साथ संघर्ष लग जाते हैं।