सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा- जहाँ तक स्वास्थ्य सेवा का सवाल है, सरकारी अस्पतालों में 40 प्रतिषत चिकित्सकों के पद रिक्त है। उसी तरह परिचारिकाओं एवं फार्मासिस्टों की संख्या भी बहुत कम है। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र डाॅक्टर उपलब्ध नहीं होते हैं वह ए.एन.एम. के भरोसे चलता है। मुजफ्फरपुर के चमकी बुखार ने प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र से लेकर जिला चिकित्सालयों की भी पोल खोल कर रख दी। अगर प्राथमिक केन्द्रों में सिर्फ ग्लूकोज चढ़ाने की व्यवस्था होती तो बहुत से बच्चों की जानें बच जाती। कोविड-19 महामारी ने बिहार सरकार के स्वास्थ्य संबंधी सभी दावों की असलियत उजागर कर दी है।
बिहार की आमजनता का निजी स्वास्थ्य सेवा पर देष के अन्य राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा निर्भरता है। बिहार सरकार स्वास्थ्य सेवा पर सबसे कम खर्च करती है। एक आकलन के अनुसार बिहार के 22 लाख परिवारों पर स्वास्थ्य सेवा पर खर्च का विनाषकारी प्रभाव पड़ा है।
भारत सरकार के राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण की रिपोर्ट से प्राप्त आंकड़ों के हिसाब से बिहार प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति 348 रूपये खर्च करता है। यह पूरे देष में प्रति व्यक्ति औसत खर्च 724 रूपये का आधा है। बिहार के आमलोगों का निजी स्वास्थ्य सेवा पर निर्भरता 74 प्रतिषत है। बिहार की 6 प्रतिषत जनसंख्या के पास ही स्वास्थ्य बीमा है, जबकि पूरे देष में इसका प्रतिषत 15 है।
वर्ष 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिषन की शुरूआत के बाद से बिहार सरकार को प्रतिवर्ष 10 प्रतिषत खर्च में वृद्धि करनी चाहिये थी लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया।
विष्लेषण से पता चला कि शहरी और ग्रामीण इलाकों में निजी चिकित्सक ही इलाज करते हैं, जबकि निजी क्लीनिक में औसत खर्च 25,000 रूपये है। जबकि सार्वजनिक अस्पतालों में यह खर्च 6100 रूपये है। बिहार में स्वास्थ्य पर होनेवाले खर्च का 80 प्रतिषत परिवार के लोग ही खर्च करते हैं।
बिहार के 200 सामुदायिक केन्द्र ही भारतीय स्वास्थ्य मानदंडों के दिषा-निर्देषों के अनुरूप कार्य नहीं करता है। सभी केन्द्रों पर विषेषज्ञ चिकित्सकों, आॅपरेषन करनेवाले, महिला रोग विषेषज्ञ एनस्थिीलिया देेने वाले एवं बाल रोग विषेषज्ञ का होना जरूरी है। बिहार में 1 लाख जनसंख्या पर एक सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र होना चाहिये। इसके आधार पर 800 केन्द्र की जरूरत है जबकि बिहार में 200 केन्द्र ही है। बिहार में 3000 प्राथमिक उपकेन्द्र होना चाहिये, जबकि उसकी संख्या मात्र 1,883 है। प्रत्येक 10 हजार की आबादी पर एक प्राथमिक स्वास्थ्य उपकेन्द्र होना चाहिये जबकि यह 55 हजार की आबादी पर एक केन्द्र है।
बिहार में डाॅक्टरों, स्टाफ, नर्सों, एन.एन.एम. के 17,441 पदों में 50 प्रतिषत करीब 8,584 पद रिक्त पड़े हुए हैं।
इसीलिये कोरोना महामारी के समय स्वास्थ्य विभाग की बदहाली सबके सामने आ गई। इस दौरान पूर्व से गंभीर रोगों से पीड़ित लोगों की बड़ी संख्या में जानें चली गई। क्योंकि उनके इलाज की कोई व्यवस्था नहीं की गई। ऐसे लोगों को निजी क्लीनिकों का सहारा लेना पड़ा जहाँ उनसे ज्यादा से ज्यादा पैसे निचोडे़ गये। (वर्ष 2016 में टेलीग्राफ में प्रकाषित रिपोर्ट)