मजदूर विरोधी गैर जनतांत्रिक सरकार – बिहार सरकार का 15 वर्षीय शासन संगठित एवं असंगठित मजदूरों के प्रति पूरी तरह उपेक्षापूर्ण एवं संवेदनहीन रहा है। इस दौर में षिक्षकों, योजना-परियोजनाओं से जुड़े कामगारों, स्वरोजगार से जुड़े मजदूरों, परिवहन, बीड़ी निर्माण मजदूरों के आंदोलनों को कुचला गया और उनके प्रतिनिधियों से कोई वात्र्ता नहीं की गई। यह सरकार मजदूरों के प्रति गैर जनतांत्रिक एवं निरंकुष रही है। सरकारी महकमों में कार्यरत ठेका मजदूरों, दैनिक मजदूरों, अस्थाई कामगारों को समान काम के लिये समान वेतन अधिकारों से वंचित रखा गया। इस दौर में श्रम विभाग की भूमिका सीमित होती चली गई और इसका काम सिर्फ मालिकों के हितों की हिफाजत करना रह गया। आष्चर्य नहीं कि बिहार सरकार ने भी अन्य राज्यों की नकल करते हुए 8 घंटे से 12 घंटे के कार्य दिवस के कानून की घोषणा कर दी।
बिहार में कल्याणकारी योजनाओं के लाभ से भी मजदूर वर्ग का बड़ा हिस्सा वंचित है। यहाँ तक की बीड़ी निर्माण मजदूरों के कल्याण कोष का लाभ भी इन मजदूरों तक नहीं पहुँच रहा है।
वृद्ध जनों के पेंषन के रूप में मिलनेवाली छोटी सी राषि के लिये भी दर-दर भटकना पड़ता है। उसी तरह विधवा, विकलांगों के लिये सरकारी योजनाओं का लाभ भी उनलोगों तक नहीं पहुँच पाता है। बिहार का रेकर्ड इस मामले में बहुत बुरा है।
मध्याह्न भोजन के कार्य से जुड़ी अत्यन्त गरीब महिलाओं, परिवहन से जुडे विषाल संख्या में कार्यरत मजदूरों को कोरोना काल में भूखे मरने के लिये छोड़ दिया गया। अचानक तालाबंदी ने सबकी रोजी-रोटी छीन ली और सरकार की ओर से न तो आर्थिक सहायता प्रदान की गई न तो मुफ्त राषन का वितरण किया गया।