बेरोजगारी – इस वर्ष के अप्रील माह तक बिहार में बेरोजगारी की दर 46 प्रतिषत थी। पढ़े-लिखे नौजवान के साथ-साथ ग्रामीण युवा दर-दर की ठोकरें खाने के लिये मजबूर है। बिहार में साढ़े चार लख पद सरकारी संस्थाओं में रिक्त है लेकिन उन्हें भरने की कोई योजना सरकार के पास नहीं है। सभी प्रतियोगी परीक्षाएँ होती भी है तो परिणाम के बाद बहाली नहीं होती है।
सरकारी योजना जैसे मनरेगा, बिहार में पूरी तरह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया है। एक रिपोर्ट के अनुसार मनरेगा के अन्तर्गत साल में 100 दिनों के बदले मात्र 36 दिन काम मिले। उसमें भी मनरेगा मजदूरों का ढेर सारा मजदूरी बकाया है।
नीतीष कुमार ने वापस आये मजदूरों को बिहार में ही काम देने की बड़ी-बड़ी घोषणाएँ की थी, लेकिन इस वादाखिलाफी के बाद घर आए मजदूर फिर से रोजी-रोटी की तलाष में वापस लौट गये।
बिहार के बाहर कार्यरत मजदूरोें की घर वापसी की समय भाजपा-नीतीष की सरकार उन्हें आने से रोकने के लिये तमाम तिकड़म्मों का सहारा लिया और बाद में उन्हें कोरोना फैलाने वाले मजदूर के रूप में बदनाम करने की मुहीम चलाई।