बाढ़ की विभीषिका- बिहार हर वर्ष बाढ़ की विभीषिका झेलता है। उत्तर बिहार के ज्यादातर जिले पहाड़ी नदियों से आने वाले तेज बहाव से पूरी तरह आप्लाविंत हो जाते हैं और यहाँ बसने वाले एक करोड़ से ज्यादा लोग अपना सबकुछ गंवा देते हैं। नदी के बहाव को रोका जाय या इस पूरी तरह बहने दिया जाय। इस अंतहीन बहस में उत्तरी बिहार के लोग गरीबी, भूखमरी से कभी उबर नहीं पाते हैं।
नीतीष कुमार के शासन काल में कोषी की बाढ़ से लेकर इस वर्ष के विनाषकारी बाढ़ में सरकार की निष्क्रियता संवेदनहीनता ने यह साबित कर दिया है कि भाजपा-जद(यू) की सरकार बाढ़ को भी एक अवसर के रूप में देखती है और यह सरकारी नेताओं, अभियंताओं, ठेकेदारों, नौकरषाहों के लिये लूट का अवसर लेकर आती है।
बिहार का उत्तरी हिस्सा बाढ़ग्रस्त होता है जबकि दक्षिणी हिस्सा सूखे से प्रभावित होता रहता है। आज के विकसित तकनीक युग में हमारे पास न तो बाढ़ से बचाव की नीती है और न तो अतिरिक्त जल को सूखाग्रस्त क्षेत्र में पहुँचाने की कोई योजना है। तथाथित जल संरक्षण नीति एक सरकारी जुमला बनकर रह गया है।