कानून व्यवस्था – नीतीष कुमार और भाजपा की ओर से बार-बार पिछले दौर के जंगल राज की बात की जाती है लेकिन आज बिहार की स्थिति क्या है ? हाल के राष्ट्रीय अपराध रेकर्ड ब्यूरों के रिपोर्ट के अनुसार बिहार दहेज हत्या में दूसरे स्थान पर है। इसमें पहला स्थान भाजपा शासित उत्तर प्रदेष को प्राप्त है। वर्ष 2017 में बिहार में 1,081 दहेज हत्याएँ हुई जो वर्ष 2016 के 987 के आंकड़े से 10 प्रतिषत अधिक है। वर्ष 2017 में 2,803 हत्याओं के मामले सामने आए जो वर्ष वर्ष 2016 के 2,581 के आंकड़े की तुलना में 9 प्रतिषत अधिक थे। इसके अलावे चोरी, लूट, डकैती एवं महिलाओं, दलितों पर यौन हमलों, बलात्कारों की संख्या में अभूतपूर्व वृ़िद्ध हुई है।
वर्ष 2018 में महिलाओं के खिलाफ होनेवाली हिंसा में 15 प्रतिषत की वृद्धि हुई। बिहार में 2018 में 651 बलात्कार की घटनाओं की रिपोर्ट पुलिस के पास दर्ज हुई। इसमें 8 घटनाएँ सामुहिक बलात्कार से जुड़ी हुई थी। कार्य स्थलों से यौन उत्पीड़न के 113 मामले दर्ज हुए और घटनाएँ आते-जाते रास्तों, गलियों, बसों, टेªनों में यात्रा के दौरान जुड़ी हुई है। लेकिन इस बीच घरेलू हिंसा में भी भारी वृद्धि हुई है। इसके साथ-साथ युवा जोड़े, जिन्होेंने अन्तर्जातीय विवाह किये उनमें से कुछ जोडों की हत्याएँ एवं उत्पीड़ित करने के मामले भी बढ़े हैं। अंधविष्वास के चलते महिलाओं को डायन कह कर निर्वस्त्र करना, विष्ठा पिलाना, ये घटनाएँ भी बढ़ी है। मुजफ्फरपुर, पटना, मोकामा, भोजपुर, रोहतास आदि से दलित युवतियों के साथ सामुहिक बलात्कार की हृदयविदारक घटनाएँ सामने आई है।
भाजपा-जद(यू) शासन व्यवस्था की खास विषेषता है, सामंती तत्वों को संरक्षण जिससे अपराधी तत्वों को फलने-फूलने का मौका मिला है।
नीतीष कुमार की सरकार जोर-षोर से भ्रष्टाचार एवं साम्प्रदायिकता के प्रति जीरो टाॅलरेंस की बात करती है लेकिन अगर पिछले 15 वर्षों के रेकार्ड को खंगाले तो स्पष्ट है कि बिहार में अपने सहयोगी भाजपा के साम्प्रदायिक गतिविधियों के प्रति नीतीष सरकार आँखें ूमंदे रही है। राष्ट्रीय अपराध रेकर्ड ब्यूरो के रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 में साम्प्रदायिक हिंसा के मामलों में 22.5 प्रतिषत वृद्धि के साथ बिहार सबसे पहले स्थान पर है। रिपोर्ट के आंकड़े के अनुसार 163 साम्प्रदायिक हिंसा में 214 लोग षिकार हुए। साम्प्रदायिक हिंसा का अनुपात सबसे ज्यादा है। यह बिहार के लिये नीतीष की खास देन है।
महिला यौन उत्पीड़न के मामले में सबसे शर्मनाक घटना मुजफ्फरपुर स्थित शेल्टर होम से आई। यह संस्थागत यौन उत्पीड़न का ऐसा मामला है जिसमें भाजपा-जद(यू) सरकार के मंत्रियों, नौकरषाहों एवं शेल्टर होम के संचालकों की संलिप्ता स्पष्ट रूप से सामने आई। समाज कल्याणमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा। लेकिन इस चुनाव में जद(यू) द्वारा फिर से उस पूर्व महिला मंत्री को चुनावी टिकट देने से यह बात स्पष्ट है, इस अमानवीय कांड में पूरा जद(यू) का नेतृत्व शामिल है और उससे जुड़े राज को दफन करना चाहता है। इसी तरह अररिया में एक युवती के साथ सामुहिक बलात्कार के बाद पीड़िता और उसके सहयोगियों को जेल भेजने की कार्रवाई बिहार की न्याय प्रणाली पर एक ऐसा बदनुमा दाग है, जो कभी मिटने वाला नहीं है।
जन आंदोलनों और संघर्षों के बल पर ही मुजफ्फरपुर एवं अररिया काण्ड से जुड़े अपराधियों को एक हद तक दण्डित करवाने में सफलता मिली। हलांकि इन घटनाओं के असली राजनैतिक संचालन दृष्य से बाहर है।